Saraswati Vandana | सरस्वती वंदना संस्कृत का अर्थ हिंदी में
सरस्वती माता की प्रचलित वंदना अर्थ सहित | Saraswati Vandana (lyrics)
विद्या वो जानकारी और गुण है, जो हम देखने, सुनने, या पढ़ने (शिक्षा) के माध्यम से प्राप्त करते है। यह ऐसी कला है, जिसमें बदलाव ला सकते है और नया, वर्तमान ज्ञान, व्यवहार, हुनर, कदर को अर्जित कर सकते है।
हिन्दुओं में देवी का दर्जा प्राप्त माँ सरस्वती विद्या एवं कला की देवी है। हिन्दू धर्म को मानने वाले, संगीत प्रेमी से लेकर वैज्ञानिकों तक हर कोई ज्ञान प्राप्ति के लिए माँ सरस्वती की पूजा आराधना करता है। सरस्वती माँ के भक्त सौभाग्य प्राप्ति के लिए हर सुबह 'सरस्वती वंदना मंत्र' का पाठ करते हैं। इनको वेदों की माता माना गया है तथा एक पवित्र नदी एवं भगवान् की मूरत दोनों के रूप में पूजा जाता है.
सरस्वती देवी त्रिदेवी लक्ष्मी, पार्वती में से एक है। ब्रह्मांड के रचियता ब्रम्हा, विष्णु और महेश की ये देवियाँ, इस ब्रह्मांड को बनाने से लेकर इसको चलाने में उनकी मदद करती है। माँ सरस्वती के भगवान के रूप का सबसे पहले वैदिक पूराण 'ऋग्वेद' में जिक्र है. इन्हीं की पूजा के लिए ही वसंत पंचमी मनाई जाती है.
जैन समुदाय और कुछ बुद्ध समुदाय के लोग भी सरस्वती देवी की पूजा करते है. भारत से बाहर नेपाल, म्यांमार, जापान, वियतनाम, कंबोडिया, थाईलैंड एवं इण्डोनेशिया में भी सरस्वती देवी की पूजा की जाती है.
सरस्वती वंदना एक महत्वपूर्ण हिंदू मंत्र है, जिसे ज्ञान और समझ के लिए पाठ किया जाता है। यह विद्यालयों, सरस्वती पूजा त्योहार मे गायी जाने वाली लोकप्रिय वंदना गीत है।
ऐसी प्रचलित स्तुति जिसके बारें में विस्तार से बताया गया है यहाँ, वो है :
- या कुन्देन्दु तुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रा वृता.....
- माँ शारदे ! कहाँ तू वीणा बजा रही हैं, किस मंजु ज्ञान......
- हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी, अम्ब विमल मति दे......
- वर दे, वीणावादिनि वर दे ! प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव......
सरस्वती देवी का स्वरुप :
माँ सरस्वती बहुत ही कोमल और सरल स्वाभाव की मानी जाती है। ये सफ़ेद रंग की साड़ी पहनती है और कमल के फूल के उपर विराजमान है जिसे रोशनी, ज्ञान एवं सच्चाई का प्रतिक माना गया है। इनके चार हाथ, उनके पति ब्रह्मा के चार सर को दर्शाते है जो मानस, बुद्धि, सित्ता एवं अहंकार को दर्शाता है।
सरस्वती माँ के चार हाथों में से एक में पुस्तक तो एक में माला, एक में पानी का कमंडल और एक में वाद्य यंत्र 'वीणा' होता है। इनके हाथों में पुस्तक वेदों को दर्शाती है। स्वान पक्षी इनके पैरों के पास होता है। यह एक पवित्र पक्षी है, जो दूध और पानी के मिश्रण से सिर्फ दूध पीता है।
प्रचलित सरस्वती वंदना अर्थ सहित :
(1.)
या कुन्देन्दु तुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रा वृता ।
या कुन्देन्दु तुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रा वृता ।
या वीणा वरदण्ड मंडित करा या श्वेतपदमासना ।।
या ब्रह्माअच्युत शंकर प्रभृतिभि: देवै: सदा वन्दिता ।
सा माम् पातु सरस्वति भगवति निःशेष जाड्यापहा ।। १।।
अर्थ - जो कुन्द के फूल, चन्द्रमा, बर्फ और हार के समान श्वेत हैं, जो शुद्ध सफेद वस्त्रों को धारण किये हुए है, जिनके हाथ उत्तम वीणा से सुशोभित हैं, जो श्वेत कमलासन पर बैठती हैं, जिसकी ब्रह्मा, विष्णु और शिव आदि देव जिनकी सदा उपासना करते हैं और जो सब प्रकार की जड़ता हर लेती हैं, वह माँ सरस्वती मेरा पालन करें।
शुक्लाम् ब्रह्मविचार सार परमाम् आद्याम् जगद्व्यापिनीम् ।
वीणा पुस्तक धारिणीम् अभयदाम् जाड्यान्धकारापाहाम् ।।
हस्ते स्फाटिक मालिकाम् विदधतीम् पद्मासने संस्थिताम् ।
वन्दे ताम् परमेश्वरीम् भगवतीम् बुद्धि प्रदाम् शारदाम् ।।२।।
अर्थ - जिनका रूप श्वेत है, जो ब्रह्मविचार की परम तत्व हैं, जो सब संसार में फैले रही हैं, जो हाथों में वीणा और पुस्तक धारण किये रहती हैं, सभी भयों से अभयदान देने वाली, अज्ञान के अंधकार को मिटाने वाली, हाथों मे वीणा-पुस्तक औऱ स्फाटिक की माला धारण करने वाली, कमल के आसन पर विराजमान होती हैं और बुद्धि देनेवाली हैं, उन आद्या परमेश्वरी भगवती सरस्वती की मैं वन्दना करता हूँ।
सरस्वति नमौ नित्यं भद्रकाल्यै नमो नम: ।
वेद वेदान्त वेदांग विद्यास्थानेभ्यः एव च ।।
सरस्वति महाभागे विद्ये कमल लोचने ।
विद्यारूपे विशालाक्षि विद्याम् देहि नमो अस्तु ते ।। ३ ।।
अर्थ - सरस्वती को नित्य नमस्कार है, भद्रकाली को नमस्कार है और वेद, वेदान्त, वेदांग तथा विद्याओं के स्थानों को प्रणाम है। हे महाभाग्यवती ज्ञानरूपा कमल के समान विशाल नेत्र वाली, ज्ञानदात्री सरस्वती ! मुझको विद्या दो, मैं आपको प्रणाम करता हूँ ।
यह श्लोक मंत्र भी है यदि इसकी नित्य प्रातःसायं वंदना की जाये तो निश्चित ही बुद्धि निर्मल होती है और मेधा की वृद्धि होती है।
माँ शारदे ! कहाँ तू वीणा बजा रही हैं,
किस मंजु ज्ञान से तू जग को लुभा रही हैं,
किस भाव में भवानी तू मग्न हो रही है,
विनती नहीं हमारी तू क्यों माँ सुन रही है,
हम दीन बाल कब से विनती सुना रहें हैं,
चरणों में तेरे माता हम सिर झुका रहे हैं,
अज्ञान तुम हमारा माँ शीघ्र दूर कर दो,
द्रुत ज्ञान शुभ्र हममें ओ वीणापाणि भर दो,
बालक सभी जगत के सूत मातु हैं तुम्हारे,
प्राणों से प्रिय तुम्हें हम पुत्र सब दुलारे,
हमको दयामयी ले निज गोद में पढाओ,
अमृत जगत का हमको माँ शारदा पिलाओ,
मातेश्वरी ! सुनो अब सुंदर विनय हमारी,
कर दया दृष्टी हर लो , बाधा जगत की सारी।
(3.)
हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे ।।
जग सिरमौर बनाएं भारत,
वह बल विक्रम दे। वह बल विक्रम दे ।।
हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे ।।
साहस शील हृदय में भर दे,
जीवन त्याग-तपोमर कर दे,
संयम सत्य स्नेह का वर दे,
स्वाभिमान भर दे। स्वाभिमान भर दे ।।1।।
हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे ।।
लव, कुश, ध्रुव, प्रहलाद बनें हम
मानवता का त्रास हरें हम,
सीता, सावित्री, दुर्गा मां,
फिर घर-घर भर दे। फिर घर-घर भर दे ।।2।।
हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे ।।
(4.)
वर दे, वीणावादिनि वर दे !
प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव
भारत में भर दे ।।1।।
काट अंध-उर के बंधन-स्तर
बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर;
कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर
जगमग जग कर दे ।।2।।
नव गति, नव लय, ताल-छंद नव
नवल कंठ, नव जलद-मन्द्ररव;
नव नभ के नव विहग-वृंद को
नव पर, नव स्वर दे !
वर दे, वीणावादिनि वर दे ।।3।।
निचे दी गई प्रार्थनायें, विद्यालयों मे गायी जाने वाली लोकप्रिय गीत होतीं है :
(2.)माँ शारदे ! कहाँ तू वीणा बजा रही हैं,
किस मंजु ज्ञान से तू जग को लुभा रही हैं,
किस भाव में भवानी तू मग्न हो रही है,
विनती नहीं हमारी तू क्यों माँ सुन रही है,
हम दीन बाल कब से विनती सुना रहें हैं,
चरणों में तेरे माता हम सिर झुका रहे हैं,
अज्ञान तुम हमारा माँ शीघ्र दूर कर दो,
द्रुत ज्ञान शुभ्र हममें ओ वीणापाणि भर दो,
बालक सभी जगत के सूत मातु हैं तुम्हारे,
प्राणों से प्रिय तुम्हें हम पुत्र सब दुलारे,
हमको दयामयी ले निज गोद में पढाओ,
अमृत जगत का हमको माँ शारदा पिलाओ,
मातेश्वरी ! सुनो अब सुंदर विनय हमारी,
कर दया दृष्टी हर लो , बाधा जगत की सारी।
(3.)
हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे ।।
जग सिरमौर बनाएं भारत,
वह बल विक्रम दे। वह बल विक्रम दे ।।
हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे ।।
साहस शील हृदय में भर दे,
जीवन त्याग-तपोमर कर दे,
संयम सत्य स्नेह का वर दे,
स्वाभिमान भर दे। स्वाभिमान भर दे ।।1।।
हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे ।।
लव, कुश, ध्रुव, प्रहलाद बनें हम
मानवता का त्रास हरें हम,
सीता, सावित्री, दुर्गा मां,
फिर घर-घर भर दे। फिर घर-घर भर दे ।।2।।
हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे ।।
(4.)
वर दे, वीणावादिनि वर दे !
प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव
भारत में भर दे ।।1।।
काट अंध-उर के बंधन-स्तर
बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर;
कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर
जगमग जग कर दे ।।2।।
नव गति, नव लय, ताल-छंद नव
नवल कंठ, नव जलद-मन्द्ररव;
नव नभ के नव विहग-वृंद को
नव पर, नव स्वर दे !
वर दे, वीणावादिनि वर दे ।।3।।
सरस्वती देवी को 'पुस्तका धारणी, वीणापानी, वर्धनायाकी, सावत्री एवं गायत्री' नाम से भी जानते है। कर्नाटक में शारदे, शारदाअम्बा, वाणी, वीनापानी आदि. तमिल भाषा में सरस्वती देवी को कलैमंगल, कलैवानी, वाणी, भारती नाम से जानते है. तेलगु में सरस्वती देवी को चादुवुला थल्ली एवं शारदा नाम से भी जानते है और कोंकणी भाषा में सरस्वती देवी को शारदा, वीनापानी, पुस्तका धारिणी, विद्यादायनी कहा गया है. नेपाल एवं भारत के अलावा सरस्वती देवी को बर्मीज़, तिपिताका भी कहते है.
सरस्वती पूजा कब है (Saraswati jayanti 2021 Date) :
हर साल बसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजा की जाती है. इस साल 2021 में यह 16 फ़रवरी, दिन मंगलवार को आएगी। वैसे बहुत से लोग नवरात्री के दिनों में भी इनकी विशेष पूजा करते है.
सरस्वती मंदिर (Saraswati Temple) :
इंडिया में सरस्वती जी के मंदिर गोदावरी नदी के किनारे बसार में, तेलांगना में वर्गाल सरस्वती और श्री सरस्वती क्षेत्रामु मंदिर, मेदक में है. सरस्वती जी के ब्राह्मणी के रूप में गुजरात, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और उत्तरप्रदेश में मंदिर है. केरल में सरस्वती जी का प्रसिध्य मंदिर दक्षिणा मूकाम्बिका है और तमिलनाडु में कूथानुर मंदिर है.
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