मिट्टी के प्रकार और उनकी विशेषताएं | Soil types in hindi
विभिन्न प्रकार के मिट्टी व उनका इस्तेमाल (Various types of soil in India)
मिट्टी यानी वो सतह जो धरती पर सबसे ऊपर होती है। मिट्टी कई तरह के खनिज पदार्थ, बैक्टीरिया, टूटे पत्थर व चट्टानों के छोटे टुकड़ों आदि का मिश्रण होती है। यह पूरी धरती मिट्टी से ढकी हुई है और इसकी भी कई परते होती हैं।
चित्र 1. मिट्टी |
हमारे देश में कई तरह की मिट्टी पायी जाती है जैसे काली, चिकनी और जलोढ़ मिट्टी आदि। भारत में जलोढ़ मिट्टी सबसे अधिक पायी जाती है। आइये जानें मिट्टी के विभिन्न प्रकार (types of mitti) व उनकी विशेषताओं तथा इस्तेमाल के बारे में।
मिट्टी के प्रकार (Soil types in hindi) :
- जलोढ़ मिट्टी
- काली मिटटी
- लाल मिटटी
- चिकनी मिट्टी
- पहाड़ी मिट्टी
- रेगिस्तानी मिट्टी
- दलदली मिट्टी
- क्षारयुक्त मिट्टी
- लैटेराइट मिट्टी
1. जलोढ़ मिट्टी (Alluvial soil)
जलोढ़ मिट्टी से हमारे देश का सबसे अधिक भाग (43.4%) ढका हुआ है। इसे 'दोमट मिट्टी' के नाम से भी जाना जाता है। यह मिट्टी दो तरह की होती है जिन्हें बांगर और खादर कहते है। बांगर यानी पुरानी जलोढ़ मिट्टी और खादर यानी नई जलोढ़ मिट्टी।
चित्र 2. जलोढ़ मिट्टी |
उत्तरी गुजरात, गंगा के मैदानी क्षेत्र, नर्मदा और तापी के कुछ स्थानों में यह मिट्टी अधिक पायी जाती है। यह मिट्टी नदियों द्वारा लायी गयी मिट्टी है और बहुत ही उपजाऊ होती है। यह फ़सलों जैसे गेंहू, मक्का, धान आदि के लिए बेहतरीन है।
2. लाल मिट्टी (Red soil)
लाल मिट्टी भारत के कुछ राज्यों जैसे उड़ीसा, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, महाराष्ट्र आदि में अधिक पायी जाती है। इस मिट्टी में लौह तत्वों की मात्रा अधिक होती है इसलिए इसका रंग लाल होता है। यह मिट्टी कपास, दालें, चावल, बाजरा, गेहूं आदि के लिए अच्छी मानी जाती है। हमारे देश के 18.6% भाग में यह मिट्टी पायी जाती है।
3. काली मिट्टी (Black soil)
काली मिट्टी ज्वालामुखी के लावे से बनती है। यह कपास के लिए उपयुक्त होती है इसलिए इसे 'कॉटन सोइल' भी कहते हैं। इसके अलावा इसे रेगुर मिट्टी और दक्कन ट्रॅप से बनी मिट्टी भी कहा जाता है। इस मिट्टी में लोहा, पोटाशियम, मैग्निशियम आदि तत्व पाए जाते हैं। यह मिट्टी महाराष्ट्र में सबसे अधिक पायी जाती है।
चित्र 3. काली मिट्टी |
इस मिट्टी का काला रंग भी इसमें लौह तत्वों की अधिक मात्रा का पाया जाना है। कपास के साथ ही यह मिट्टी सोयाबीन, केला, तंबाकू, सोयाबीन, मूँगफली और ज्वार आदि के लिए उपयुक्त है।
4. चिकनी मिट्टी (Clay soil)
यह मिट्टी अन्य मिट्टियों के निर्माण में सहायक है जो मिट्टी की बनावट को बनाती है। इसके कण का आकार आमतौर पर 0.002 मिमी से कम होता है, यानि बहुत ही छोटा। इसकी पानी की रोकने की क्षमता बहुत अच्छी है जो पौधों के लिए उपयुक्त नहीं है। लेकिन रेत जैसे अन्य मिट्टी के कणों के साथ इसे मिलाने से मिट्टी के जल धारण क्षमता के सुधार में मदद मिलती है। इन गुणों के कारण, इसका उपयोग मिट्टी के बर्तनों, सजावटी और निर्माण उत्पाद, जैसे कि ईंट, दीवार और फर्श टाइल्स बनाने के लिए किया जाता है।
5. पहाड़ी मिट्टी (Forest soil)
पहाड़ी मिट्टी हिमालय या पहाड़ी इलाकों में पायी जाती है। इसे वन्य मिट्टी भी कहा जाता है। पूरे भारत में यह मिट्टी फैली हुई है लेकिन जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश आदि स्थानों में अधिक पायी जाती है। इस मिट्टी में सेब और नाशपाती जैसे फल अच्छे से उगते हैं। इसके अलावा आलू, चाय, कॉफी, गेहू आदि के लिए भी यह अच्छी है।
चित्र 4. पहाड़ी मिट्टी |
6. रेगिस्तानी मिट्टी (Desert soil)
जैसा की नाम से ही पता चल रहा है यह मिट्टी रेगिस्तान में अधिक पायी जाती है इसीलिए इसे रेगिस्तानी मिट्टी कहा जाता है। यह मिट्टी गर्मी वाले सूखे स्थानों में होती है जैसे राजस्थान, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दक्षिणी पंजाब आदि जहाँ अधिक गर्मी पड़ती है।
चित्र 5. रेगिस्तानी मिट्टी |
इस मिट्टी में फास्फोरस अधिक होता है लेकिन जीवांश और नाइट्रोजन की मात्रा कम होती है। यह मिट्टी रेतीली होती है और इसमें मूंगफली और बाजरा जैसी खेती होती है।
7. दलदली मिट्टी (Marshy soil)
दलदली मिट्टी को गीली मिट्टी भी कहा जाता है और इसमें जैविक तत्व अधिक पाए जाते हैं। जो क्षेत्र तटीय हैं या जहाँ पानी अधिक होता है वहां यह मिट्टी अधिक पायी जाती है जैसे केरल के तट, तमिलनाडु के दक्षिण-पूर्वी तट, सुंदरवन के डेल्टाई क्षेत्र, उड़ीसा के तट आदि। इस मिट्टी का प्रयोग बाग़वानी में किया जाता है।
8. क्षारयुक्त मिट्टी (Alkaline soil)
ऐसे क्षेत्र जहाँ बहुत कम वर्षा होती है या जो क्षेत्र दलदली होते हैं उनमे क्षारयुक्त मिट्टी पाई जाती है। इस मिट्टी में कैल्सियम, सोडियम और मैग्निशियम आदि की मात्रा अधिक होती है। इस मिट्टी को स्वीट साइल भी कहा जाता है। यह मिट्टी अन्य मिट्टियों की तुलना में कम घुलनशील होती है इसलिए इसमें पोषक तत्व कम मात्रा में पाए जाते हैं। सब्ज़ियाँ उगाने के लिए यह मिट्टी अच्छी मानी जाती है।
9. लैटेराइट मिट्टी (Laterite soil)
लैटेराइट मिट्टी को हल्की मिट्टी भी कहा जाता है। यह मिट्टी चट्टानों के टूटने और अन्य रासायनिक क्रियाओं के कारण बनती है। भारत के कई राज्यों जैसे तमिलनाडु, असम, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र आदि में लैटेराइट मिट्टी मिलती है। यह देखने में लाल मिट्टी के जैसी होती है लेकिन लाल मिट्टी इससे अधिक उपजाऊ होती है। इसे चाय, कॉफी नारियल आदि की खेती के लिए बेहतरीन माना जाता है। यह मिट्टी तीन तरह की होती है जैसे गहरी लाल लैटेराइट, सफेद लैटेराइट और भूमिगत जलवायु लैटेराइट।
मिट्टी के कुछ विशेष इस्तेमाल
हमारे देश में मिट्टी को मिट्टी नहीं बल्कि एक ख़ज़ाना माना जाता है क्योंकि इसमें कई औषधीय गुण होते हैं जो मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए बेहद उपयोगी हैं। जानिए इसके उपयोगों के बारे में:
- कई त्वचा सम्बन्धी समस्याओं जैसे घाव, फोड़े, जलन आदि में राहत पाने के लिए काली मिट्टी का प्रयोग किया जाता है।
- मधुमक्खी के काटने पर भी प्रभावित स्थान पर इस मिट्टी को लगाने से राहत मिलती है।
- मुल्तानी मिट्टी का प्रयोग भी त्वचा की परेशानियों को दूर करने और सुंदरता बढ़ाने के लिए किया जाता है।
- अगर अधिक तेज़ बुखार हो तो उस बुखार को कम करने के लिए मुल्तानी मिट्टी या गीली का मोटा लेप प्रभावशाली होता है।
- पेट के रोगों जैसे कब्ज, दर्द, आंतों में परेशानी को दूर करने में भी गीली मिट्टी का लेप लाभदायक होता है।
- सिरदर्द को दूर करने में के लिए भी गीली मिट्टी के लेप से लाभ होता है।
- कान के दर्द, कान में पस पड़ना जैसी समस्याओं को दूर करने के लिए भी मिट्टी के लेप से राहत मिलती है।
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Reviewed by AwarenessBOX
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07:56
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किन किन मिट्टियों से बर्तन बनते हैं?
ReplyDeleteमनीष ख़ज़ांची
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